“रैविशिंग वूमन संस्था” का वार्षिक सम्मान समारोह प्रति वर्ष आयोजित किया जाता था.उस दिन नारी-शक्ति की प्रतीक एक महिला को उसकी उपलब्धियों, उसके संघर्ष और विजय आदि के आधार पर सम्मानित किया जाता था. संस्था की अध्यक्षा डॉ नंदिता नाथ ने अपने वक्तव्य में कहा-
“मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी है कि इस वर्ष रैविशिंग वूमन के गौरवपूर्ण सम्मान के लिए हमारे सियाटेल नगर की शालिनी यादव को सम्मानित किए जाने का निर्णय लिया गया है, एक छोटे शहर मथुरा से आई सामान्य लड़की शालिनी ने अकेले अपने अदम्य साहस, धैर्य और आत्मविश्वास से अनेकों कल्पनातीत विषम परिस्थितियों पर अपने संघर्ष से विजय प्राप्त की है.
आज शालिनी ने अपने को न केवल अमरीका में स्थापित ही किया है बल्कि नारी-शक्ति को चरितार्थ किया है. हमें शालिनी यादव पर गर्व है. मै शालिनी जी को मंच पर आमंत्रित करती हूँ. स्थानीय मेयर महोदया से निवेदन है वह शालिनी जी को बुके देकर उनका स्वागत करने की कृपा करें
धीमे कदमों से मंच पर जाकर बुके लेती शालिनी के लिए तालिया गूँज उठीं, कैमरों से शालिनी का चित्र लेने की होड़ लग गई.जलपान के समय स्त्रियों ने शालिनी को घेर लिया. सब उसके संघर्ष की कहानी जानने को उत्सुक थीं,पर उतने कम समय में क्या शालिनी अपने वर्षों के जीवन- संघर्ष की कहानी सुना सकती थी?
घर वापिस आई शालिनी फ्लॉवर वाज़ में फूल सजाती वर्षों पुरानी यादों में खो गई. चित्र आँखों के सामने खुलते गए-
दुबई से राजीव के परिवार की पुराने शहर मथुरा में वापिसी से कॉलोनी की युवा पीढी का राजीव हीरो बन गया था. राजीव के आने की सबसे ज़्यादा खुशी शालिनी को हुई थी. बचपन से साथ खेलते दोनों ने एक साथ हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. दोनों की मित्रता के उदाहरण दिए जाते थे. परिवार के साथ राजीव के दुबई जाने से शालिनी को अपने मित्र की कमी खलती थी. पड़ोसी होने के कारण शालिनी और राजीव के परिवारों में भी.में भी घनिष्ठता थी. वर्ष बीत गए थे अब राजीव एक मेधावी युवक बन कर वापिस आया था और शालिनी भी मितभाषी सौम्य युवती बन चुकी थी थी. सादगी और सच्चाई के कारण शालिनी सबको प्रिय थी. वापिस आने पर राजीव सबसे पाहिले शालिनी से मिलने गया, उसे देख शालिनी खिल उठी दोनों का आपसी स्नेह और मैत्री पूर्ववत थी.उनकी बातें खत्म ही नहीं होती थीं .
राजीव महत्वाकांक्षी युवक था, उसने अपने भविष्य के सपने पहले ही निर्धारित कर लिए थे, अब वह अमरीका से एम बी ए करने जाने वाला था.राजीव जब भी अमरीका के विषय में शालिनी को बताता, शालिनी सोचती काश कभी वह भी सपनों के देश अमरीका जा पाती. शालिनी भी आगरा यूनीवर्सिटी से होम इकोनोमिक्स में मास्टर्स करने के लिए प्रवेश ले चुकी थी. राजीव शालिनी से कहता-
“अगर तुम अमरीका जाना चाहती हो तो अमरीका जाने के पहले तुम्हें अपने को तैयार करना होगा.वहां की लाइफ बहुत फास्ट है. वहां की लडकियां हर क्षेत्र में लड़कों के समकक्ष ही नहीं कहीं कहीं –कहीं उनसे बहुत आगे हैं. अगर तुम अमरीका के विषय में पढो तो तुम्हें उनके मुकाबले अपने आप में और मथुरा शहर में बहुत कमियाँ ज़रूर नज़र आएंगी.”
“हमें डराओ नहीं, एक बात तुम नहीं जानते भारतीय लडकियां हर स्थिति और परिवेश में अपने को एडजस्ट कर लेती हैं. वैसे भी हम भला अमरीका कैसे जा सकते हैं.”मायूसी से शालिनी कहती.
“ऐसा क्यों सोचती हो, जहां चाह वहां राह, कोशिश करने से तुम्हारे सपने भी सच हो सकते हैं. मन में साहस और विश्वास हो तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता.”
“थैंक्स राजीव, मास्टर्स पूरी करने के बाद हम ज़रूर कोशिश करेंगे तुम्हारे शब्दों से बहुत प्रेरणा मिली है, हमेशा याद रखूंगी. तुम्हारे लिए लिए हमारी शुभ कामनाएं.”अचानक राजीव की बातों ने शालिनी में एक नया उत्साह और आत्मविश्वास जगा दिया.
सबकी शुभ कामनाओं के साथ राजीव अमरीका चला गया.
पर कभी-कभी सपने भी सच हो जाते हैं.अचानक शालिनी के पापा के एक मित्र ने शालिनी के लिए एक रिश्ता बताया. अमरीका से अमर नाम का युवक भारतीय लड़की के साथ विवाह करने भारत आरहा था. आई आई टी से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग करने के बाद अमर अमरीका में माइक्रोसॉट जैसी नामी कम्पनी में काम कर रहा है.उसका परिवार हरयाना के एक गाँव में ज़रूर रहता है,पर परिवार के सब बच्चे सुशिक्षित थे. शालिनी के परिवार वाले अमर के परिवार से मिलने उसके गाँव गए. शीघ्र ही अमर और उसके माता-पिता शालिनी से मिलने मथुरा आने वाले थे.
निश्चित दिन अमर अपने माता-पिताके साथ आगया था.धड़कते दिल के साथ शालिनी उसके सामने गई थी.अमर ने नरमी से पूछा -
“आप की भविष्य की क्या योजना है, आगे क्या करना चाहती हैं?”
शालिनी ने धीमे से अपनी आगे की योजना बताते हुए कहा था-
“अगर आप कोई हाई-फ़ाई लड़की चाहते हैं, तो मै बिलकुल वैसी नहीं हूँ, मेरी अंग्रेज़ी भी कमज़ोर है.”
“कोई बात नहीं, अमरीका में आप सब सीख जाएंगी, मुझे आपकी सच्चाई पसंद आई है.”
“एक बात और कहनी है, मै अपनी एम् एस सी की पढाई पूरी करना चाहती हूँ.”
“उसमें कोई बाधा नहीं आएगी. वैसे भी मुझे ग्रीन कार्ड मिलने में कुछ समय लगेगा.”
अमर अभी एच वन वीसा पर था.शादी के बाद पत्नी के साथ ग्रीन कार्ड लेने की सोच कर जल्दी शादी का निर्णय लिया गया था. पन्द्रह दिनों के भीतर शादी कर के वह अमरीका लौटने वाला था.-
अमर की हाँ से घर में खुशी का माहौल बन गया.सबने शालिनी के भाग्य को सराहा उसकी माँ ने कहा-“हमारी शालिनी बेटी है ही बहुत भाग्यवान, इसके जन्म पर इसके पापा का डी एस पी के रूप में सेलेक्शन हुआ था. ग्रेड अच्छे होने पर अब उन्होंने यूनीवर्सिटी में जॉब ले लिया है.”
विवाह की तैयारियों और रिश्तेदारों के आ जाने से शालिनी भी व्यस्त होगई, सहेलियां चिढातीं-
‘शादी के बाद शालिनी अमरीकन बन कर लौटेगी. हमारे मथुरा की भला याद रहेगी?”शालिनी सोचती भला वह कभी मथुरा को भूल सकेगी, जहां उसका मीठा बचपन बीता है.
अंतत: शादी का दिन आ पहुंचा. दिसंबर की ठंडी रात में भी शालिनी के मन में खुशी की ऊष्मा थी.विवाह हर्षौल्लास के साथ संपन्न होगया. विदा होती शालिनी को उसकी माँ ने प्यार से सीख दी थी-
“शालू बेटी, मै जानती हूँ, तू बहुत अच्छी लड़की है. कभी किसी की गलत बात पर भी विरोध ना कर के चुप रह जाती है. बस ऐसे ही अपने श्वसुर –गृह में भी अपने माता-पिता के सम्मान को बनाए रखना.”
ससुराल पहुंची शालिनी का स्वागत आशानुरूप उत्साह से नहीं किया गया. श्वसुर जी बेहद नाखुश थे. उनकी आशा के अनुरूप दहेज़ नहीं मिला था. अमर ने दहेज़ मांगने को मना कर दिया था.सास भी औरतों से कह रही थीं-
“हमारा हीरा जैसा बेटा मथुरा वाले कौड़ियों के मोल ले गए. हमें डर था कहीं अमर किसी गोरी मेंम के जाल में ना फंस जाए इसीलिए जल्दी में ये रिश्ता करना पडा, हम तो ठग गए.”
“अरे कुछ कमीने ऐसे ही होते हैं, कुछ ना मांगों तो खाली लौटाते शर्म नहीं आती.” श्वसुर जी बडबडाते.
माता-पिता के लिए अपशब्द सुनती शालिनी की आँखों में आंसू आ जाते उसके माता-पिता ने अपनी सामर्थ्य से अधिक सामान दिया था. शालिनी उनकी सबसे बड़ी बेटी थी, उसकी शादी में दिल खोल कर खर्च किया था. अगर उन्हें पैसे ही चाहिए थे तो साफ़ शब्दों में अपनी मांग बता देते. अमर इन बातों के विरोध में कुछ नहीं कहते, सोच कर शालिनी दुखी होती,पर अमर से कुछ नहीं कहा. एक सप्ताह बाद जल्दी आने का वादा कर अमर चला गया. शालिनी भी अपनी पढाई पूरी करने वापिस मथुरा चली गई.
डेढ़ वर्ष बाद ग्रीन कार्ड पाने के लिए अमर वापिस आया था. शालिनी भी एम एस सी कर चुकी थी.दोनों को ग्रीन कार्ड मिल गया. अब शालिनी के अमरीका जाने का समय आगया था. पहली बार प्लेन में बैठती शालिनी को कुछ घबराहट हुई, पर अपने को बादलों के ऊपर उड़ते देख शालिनी उत्साहित हो उठी.
सियाटेल का भव्य एयरपोर्ट देख शालिनी चमत्कृत थी. टैक्सी से बाहर देखती शालिनी को साफ़ चौड़ी सड़कों पर् दौडते अनगिनत तेज़ भागते वाहन विस्मित कर रहे थे. सियाटेल की हरीतिमा और सौन्दर्य ने उसे मुग्ध कर दिया. शायद स्वर्ग इसे ही कहते हैं. टैक्सी अमर के अपार्टमेंट के सामने रुकी थी. अपनी चाभी से दरवाज़ा खोल अम्रर ने शालिनी को अन्दर आने को कहा था. घर के भीतर गई शालिनी ने एक नज़र अपने घर पर डाली थी. एक बैचलर के मुकाबिले घर काफी सुव्यवस्थित था. अमर ने कहा-
“शायद फ्रिज में कुछ खाने का सामान बचा रखा होगा, अगर भूख लगी हो तो निकाल लो.”
“नहीं, अभी फ्लाइट में तो इतना खाया है, शाम के लिए कुछ ताज़ा बना लूंगी. इतने दिन का बासी खाना कैसे खाएंगे?’खुशी से शालिनी ने कहा.
“यहाँ बासी का कॉन्सेप्ट ही अलग है, महीनों पुराना खाना भी ताज़ा ही रहता है. तुम्हें अभी बहुत कुछ सीखना होगा, ये मथुरा नहीं है.”स्पष्ट आवाज़ में अमर ने कहा.
“घबराइए नहीं,बहुत जल्दी सब सीख लूंगी.”मुस्कुरा कर शालिनी बोली.
“सबसे पहले तो ज़रा अपने कपडे देखो. टीवी पर वेस्टर्न ड्रेसेज तो देखती होगी. कम से कम दिल्ली से कुछ वेस्टर्न ड्रेसेज ही ले आतीं, तुम नहीं जानतीं यहाँ कपडे कितने महंगे होते हैं,अमर ने रुखाई से कहा.
शालिनी का मन बुझ गया, उसे तो यही पता था, पति अपनी नवविवाहिता को गिफ्ट देने में खुशी का अनुभव करते हैं. पर शायद अमर ठीक कह रहा था, उसे इस बारे में पहले ही सोचना चाहिए था.
अमर सवेरे जाकर देर शाम को लौटता था. वह अधिक बातें नहीं करता था, शालिनी को अमर के व्यवहार से कोई शिकायत नहीं थी. इतना ज़रूर था जब भी उसके घर से फोंन आता, उसका मूड ख़राब हो जाता. हर फोन- काल के बाद अमर को शालिनी से किसी न किसी बात की शिकायत हो जाती.
“तुम्हारे मम्मी-पापा को यह भी नहीं पता लड़की की ससुराल में तीज-त्योहार पर कितना सामान भेजना चाहिए.मेरे पेरेंट्स के भी तो कुछ अरमान थे. अगर हरयाणवी रीति-रिवाज़ नहीं पता थे, तो मुझसे शादी करनी ही नहीं चाहिए थी. नाराजगी में घर से बाहर निकल जाता और घंटों बाद वापिस लौटता.
अमरीका में दिन बीतने शुरू होगए. शालिनी हर बात को ध्यान से देखती, समझने की कोशिश करती. पास के घरों में रहने वाली स्त्रियों से शालिनी ने मिलना शुरू किया था. उसे खुशी थी, उसके घर के पास उसकी तरह की कुछ लडकियां विवाह के बाद अमरीका आई थीं. नीता और सविता से शालिनी की अच्छी पटने लगी थी. हांलाकि अंग्रेज़ी उसकी कमजोरी थी,पर पास में रहने वाली अकेली वृद्धा मारिया उससे स्नेह से मिलती, उसने शालिनी को हिम्मत दी कि वह उनके साथ नि:संकोच अंग्रेज़ी में बात कर सकती है,. मारिया ने शालिनी को यह भी समझाया-
“इस देश में सब स्त्री-पुरुष काम करते हैं, तुमने जो डिग्री ली है, उसके आधार पर कोई काम कर सकती हो. मेरी एक फ्रेंड है, वह तुम्हें तुम्हारे योग्य काम के लिए तुम्हारी सहायता कर सकती है.”
मारिया की फ्रेंड की सहायता से शालिनी ने अपनी पसंद के विषय चाइल्ड- केयर का लाइसेंस ले लिया.. पर अभी काम शुरू करने की बात नहीं सोची. पहले उसे अमेरिकन जीवन-शैली को समझना ज़रूरी था.इसके लिए सविता और नीता से बहुत जानकारी मिलती थी.
सविता और नीता ने शालिनी को सलाह दी कि उसे ड्राइविंग सीख लेनी चाहिए वरना छोटी-छोटी —ज़रूरतों और काम पर जाने के लिए उसे अमर पर निर्भर होना पड़ेगा. ड्राइविंग सीखने की बात पर अम्रर बोला-
“वाह लगता है तुम्हारे पर निकल आए हैं, मेरे पास दूसरी कार खरीदने के लिए फ़ालतू पैसे नहीं हैं.वैसे भी तुम कौन सी नौकरी पर जाती हो,”
“विश्वास रखिए जल्दी ही कोई काम शुरू करूंगी,प्लीज मुझे ड्राइविंग सीखने की परमीशन चाहिए.”
शालिनी को राजीव की बात याद हो आई, उसने कहा था, अमरीका में लडकियां कार ही नहीं बड़ी-बड़ी-वड़ी बसें चलाती हैं. शालिनी के बार-बार के अनुरोध पर अंतत: अमर ने ड्राइविंग स्कूल में शालिनी का नाम रजिस्टर करा दिया.शालिनी पूरे मन से ड्राइविंग सीखने लगी. जिस दिन उसे ड्राइविंग लाइसेंस मिला उसकी खुशी का अंत नहीं था. उसने एक विजय पा ली थी. इस बीच उसने ग्राफिक्स डिज़ाइनिंग और इंग्लिश की क्लासेज़ भी पूरी कर लीं. अब शालिनी कोई काम तलाशने की बात सोच रही थी कि शालिनी को आभास हुआ कि वह माँ बनने वाली है.
शालिनी की खुशी का ठिकाना ना रहा. किताबें पढ़ कर शालिनी अपने आने वाले शिशु के लिए अपने को तैयार कर रही थी. प्रसव समय निकट आने पर शालिनी ने बड़ी नम्रता से अमर से कहा—
“आपसे एक अनुरोध है, डिलीवरी के समय माँ के आने से मुझे साहस और सहायता मिलेगी. अगर आप अनुमति दें तो इस समय अपनी माँ को यहाँ बुलाना चाहती हूँ.”
“ठीक है, पर यहाँ आने के लिए अपना टिकट उन्हें खुद खरीदना होगा.अभी मुझे कुछ फाइनेंशियल प्रॉब्लेम है वरना टिकट ज़रूर भेजता.अब देखो बेबी के जन्म के पहले ही ढेरों सामान खरीदना होग़ा. हमारे हिन्दुस्तान में ऐसे झंझट नहीं होते.”संजीदगी से अमर ने कहा.
‘आप उसके लिए परेशान ना हों, माँ अपना यहाँ आने का खर्च उठा सकती हैं.”शालिनी ने जब खुशी से यह बात आंटी मारिया को बताई तो उन्होंने आश्चर्य से कहा-
“क्या अमर को पैसों की प्रॉब्लेम है क्या तुम उसकी सैलरी जानती हो? मुझे नहीं लगता उसे इंडिया एक टिकट भेजना कठिन बात है. तुम्हारा ज्वाइंट अकाउंट तो होगा.”
“नहीं, आंटी, मुझे यहाँ के बैंक वगैरह के बारे में कुछ नहीं पता. मुझे जो भी चाहिए अमर से ले सकती हूँ. अमर को ज़रूर कोई मुश्किल होगी.” शालिनी को अमर पर पूरा विश्वास था.
माँ के आ जाने से शालिनी बेहद खुश थी. माँ ने आते ही शालिनी को सारे घर के कार्यों से मुक्त कर दिया, दामाद होने के कारण माँ अमर का बहुत ख्याल रखतीं,पर अमर उनके स्नेह के प्रति उदासीन रहता बल्कि एक दिन उसने शालिनी से कहा-
“अपनी माँ से कह दो, मै बच्चा नहीं हूँ. अपनी परवाह खुद कर सकता हूँ.””
दिसंबर में शालिनी ने एक नन्हीं बेटी नेहा को जन्म दिया. माँ और बेटी दोनों सकुशल हैं की सूचना जब अमर ने अपने परिवार वालों को दी तो बधाई की जगह उसे ढेरों उलाहने सुनाने को मिले.
“कौन सी खुशी की बात सुना रहे हो? कौन सा बेटा जन्मा है. तुझ पर एक और बोझ बढ़ा दिया. अमरीका में शालिनी की माँ मौज उड़ा रही है, उसके टिकट पर अपने पैसे लुटा डाले.”श्वसुर जी दहाड़े.
“तुझे अपनी माँ पर यकीन नहीं था जो अपनी सास को बुला कर हमें बेइज्जत किया है. हमें तो पक्का यकीन है,शालिनी और उसके घरवाले तुझे लूट लेंगे.मेरी बात मान,बहुत होगया अब तू शालिनी से तलाक ले ले. तुझे एक नहीं हज़ार अच्छी और अमीर घर की लडकियां मिल जाएंगी.”
इत्तेफाक से शालिनी ने फोन के दूसरे कनेक्शन पर ये बातें सुन लीं. उसे आश्चर्य था कि अमर ने एक भी बात का प्रतिवाद नहीं किया इससे शालिनी स्तब्ध रह गई. अमर यह भी क्यों नहीं कह सका माँ अपने पैसे खर्च कर के यहाँ आई थी, अपनी बेटी और नातिन की सेवा करने आई है, मौज उड़ाने नहीं. वह तो घर से बाहर भी नहीं निकली थी. उस रात अमर बेहद उखड़े मूड में बाहर से खाना खाकर लौटा. कुछ स्वस्थ होते ही माँ को और अपमानित ना होने देने के कारण शालिनी ने माँ को वापिस भेज दिया. अमर से कोई शिकायत न कर अमर के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करती रही.
दो वर्ष बाद शालिनी फिर माँ बनने वाली थी. इस बार अमर ने अपने माँ-बाप को बुला लिया.डॉक्टर ने कहा इस बार केस बहुत कॉम्प्लिकेटेड था. शालिनी को कम्प्लीट बेड- रेस्ट बताया गया था.सास का मानना था शालिनी ने डॉक्टर को भरमा कर आराम करने का बहाना बनाया था. शालिनी बहाना करके सास से सेवा करवाना चाहती है.सास ने जोर देना शुरू किया-
“अल्ट्रासाउंड करा लो अगर कोख में बेटी है तो उसे खत्म करना ज़रूरी है.” शालिनी ने साफ़ मना कर दिया, जो भी हो वह किसी भी हालत में अल्ट्रासाउंड नहीं कराएगी.
शालिनीके मना करने से सास का पारा और चढ़ गया, पर शालिनी नहीं मानी. दूसरी बेटी कोमल के जन्म से तो घर में भयंकर महाभारत छिड़ गई.
“हाय राम हमारे बेटे की तो किस्मत ही फूट गई दो-दो कुलाक्षणियां छाती पर मूंग दलने आगईं, हमारा अमर तो इन्हें पार लगाते-लगाते कंगाल हो जाएगा.” सास ने पोतियों को कोसना शुरू कर दिया.नन्हीं कोमल इस दुनिया में आने पर अपने स्वागत को टुकुर-टुकुर ताक रही थी.
“बेटा हमारा इंडिया का टिकट कटा दो, हम यहाँ नहीं रह सकते.बच्चों के जन्म पर ननिहाल से कपडे -जेवर आते हैं यहाँ हमें लूटा जारहा है.बहाना बना करके तेरी पत्नी अपनी सास से सेवा करवा रही है.”श्वसुर जी ने सिर्फ नाराजगी ही नहीं दिखाई बल्कि वापिस चले भी गए.
उनके वापिस जाने से अमर बहुत दुखी था और इसके लिए वह शालिनी को उत्तरदायी मानता. माँ-बाप की रोज़ की बातों और शिकायतों के कारण शालिनी और अमर के संबंधों में दरार आने लगी थी.उनका संबंध अब पहले जैसा नहीं रह गया था.अमर को अपने माँ-बाप की बातें और शिकायतें उचित लगतीं. वह भी अक्सर कहता-
“जल्दबाजी के कारण मुझे भी धोखा हो गया. मेरे लिए एक से एक अच्छे प्रोपोज़ल्स थे, ग्रीन कार्ड पाने की वजह से जैसा-तैसा जो मिला स्वीकार करना पड़ा.”
शालिनी जवाब देना चाहती, उसने तो अमर से कुछ नहीं छिपाया था अब शिकायत क्यों, पर अपने शांत स्वभाव के कारण वह मौन रह जाती शालिनी विस्मित होती, आई आई टी का पढ़ा इन्जीनियर अमर अपने माँ-बाप की गलत बातों का विरोध ना करके, शालिनी पर अपनी नाराजगी उतारता.
उनके जाने के कुछ दिनों बाद मथुरा से शालिनी के पापा ने शुभ सूचना दी कि शालिनी के भाई की शादी की तिथि निश्चित हो गई है, दामाद जी को विशेष आदर से निमंत्रित किया गया था. शालिनी की खुशी का ठिकाना नहीं था.इतने दिनों बाद अपने पति और अपनी बेटियों के साथ अपने घर जारही थी. घर में परिवार जनों ने बहुत प्यार और उत्साह से शालिनी, अमर और उनकी बेटियों का स्वागत किया.
मथुरा जाने के पहले अमर ने शालिनी से कहा था –
“शादी के घर की भीड़भाड़ में पासपोर्ट और ग्रीन कार्ड सुरक्षित नहीं रहेंगे, इन्हें मेरे पापा के लॉकर में छोड़ जाओ.”अमर की बात ठीक थी शालिनी ने अपने महत्वपूर्ण डॉक्युमेंट्स श्वसुर जी के पास रखवा दिए.
हंसी-खुशी शादी संपूर्ण हो जाने पर अमर वापिस अमरीका चला गया. शालिनी एक-दो माह अपने परिवार के साथ बिताने को मथुरा में ही रुक गई.अचानक एक दिन अमर का उदास स्वर सनाई दिया –
“शालिनी, मेरा जॉब चला गया. तुम तो जानती ही हो माइक्रोसॉफ़्ट में ले-ऑफ़ होते रहते हैं.अब कुछ दिन तुम्हे और मथुरा में रहना होगा. जैसे ही कोई दूसरा जॉब मिलेगा तुम्हें बुला लूंगा.”
शालिनी दिन गिनने लगी, रोज़ प्रार्थना करती अमर को जल्दी कोई जॉब मिल जाए. दिन बीतते रहे, तीन महीने तक अमर से शालिनी को कोई जॉब मिलने का समाचार ना मिलने से शालिनी के पापा को संदेह हुआ. उनके कहने पर शालिनी ने अपनी सहेली नीता से अमर के समाचार पूछे, नीता ने जो बताया वो शालिनी को स्तब्ध करने को काफी था. अमर की नौकरी नहीं गई थी, वह माइक्रोसॉफ़्ट में पूर्ववत कार्यरत था. उसके माता-पिता उसके साथ रह रहे हैं. वे सब लोग मजे से हैं.
शालिनी ने अमर को फोन कर के कहा अब वह अमरीका वापिस आना चाहती है, उसे अपने पासपोर्ट और ग्रीनकार्ड चाहिए. अमर का उत्तर सर्वथा अप्रत्याशित था-
“क्या कह रही हो? पासपोर्ट और ग्रीन कार्ड तो तुम्हारे ही पास थे. ज़रूर तुमने ये महत्वपूर्ण डॉक्युमेंट्स खो दिए हैं, तुम भला मेरे पापा के पास ये ज़रूरी डॉक्युमेंट्स क्यों छोड़तीं.”
शालिनी के पाँव तले ज़मीन खिसक गईं.अमर का धोखा साफ़ सामने आगया. पहले भी कई बार उसकी माँ को कहते सुना था, तू तलाक ले ले, एक से एक अच्छी लड़की मिलेगी. इसमें है ही क्या, ना तो कोई दान-दहेज़ लाई ना ही अमरीका में काम कर के कमाई करने लायक है. हम तो जल्दबाजी में मारे गए.”
अब शालिनी के सामने बहुत बड़ी समस्या मुंह बाए खडी थी. पर उसने दृढ निश्चय कर लिया, वह किसी भी हालत में हार नहीं मानेगी. मथुरा से दिल्ली में स्थित अमरीकन एम्बैसी के चक्कर लगाती शालिनी अमर के धोखे का सामना करने को दृढ प्रतिज्ञ थी. एम्बैसी के अधिकारी उसका सत्य मानने को तैयार नहीं थे, उनका कहना था ऎसी घटनाए आए दिन घटती है, शादी कर के बहुत से लोग पत्नी को यहाँ छोड़ कर अमरीका वापिस चले जाते हैं. तुम पर कैसे यकीन किया जाए कि तुम ग्रीन कार्ड होल्डर हो.
दोनों बेटियों का जन्म अमरीका में हुआ था वे अमेरिकन नागरिक थीं. अत:अमरीका से उनके जन्म के कागजात मिल जाने से उनके पासपोर्ट बन गए. सौभाग्यवश शालिनी के पास उसका ड्राइविंग लाइसेंस था उसमें उसका पूरा पता था. शालिनी द्वारा उसका सोशल सिक्यूरिटी नंबर बताने से अमरीका से जानकारी मंगाई गई. जानकारी मिलने पर शालिनी को अमरीकन एम्बैसी से एक बंद पैकेट दिया गया . पैकेट को ना खोलने के निर्देश के साथ वो पैकेट उसे अमरीका के इमीग्रेशन डिपार्टमेंट को देना था. शालिनी ने अमर और नीता को फोन से सूचित किया कि वह अमरीका पहुँच रही है.
भारतीय एयरपोर्ट पर दो नन्हीं बेटियों के साथ बोर्डिंग के लिए प्रतीक्षा कर रही शालिनी को पुलिस ने बोर्डिंग करने से रोक कर कहा कि अमरीका में रह रहे उसके श्वसुर ने रिपोर्ट की है कि शालिनी झूठे दस्तावेजों पर अमरीका जा रही है. शालिनी ने अपना बंद पैकेट दिखाया. अमरीकी एम्बैसी के पेपर्स देख कर उसे जाने की इजाज़त दी गई, यही कहानी लन्दन एयरपोर्ट पर दोहराई गई .इतनी समस्याओं का सामना करने के बाद जब शालिनी अपनी दो नन्हीं बेटियों के साथ सियाटेल पहुंची तो अमर उसे लेने नहीं आया था. नीता के पति ने उन्हें घर पहुंचाया. दरवाज़ा अमर ने खोला.शालिनी ने कोई बात नहीं की. कुछ देर बाद अमर ने नाराजगी से कहा-“तुम बिना मेरी इजाजत कैसे आगईं? वापिस इंडिया जाओ, माफी मांगो, जब इजाज़त दूंगा तब आना.”“मै यहाँ इसी घर में रहूंगी. इस घर पर मेरा भी आधा अधिकार है.”शालिनी ने दृढ़ता से कहा.“”किस अधिकार की बात कर रही हो,तुम कर ही क्या सकती हो?मेरे बिना तुम कुछ नहीं हो. या तो मैकडोनाल्ड में काम करोगी या सड़क पर भीख मांगोगी.”अमर ने तेज़ी से कहा.“क़ानून मुझे न्याय दिलाएगा. अपने और बेटियों के अधिकार के लिए लिए अन्याय नहीं सहूंगी.”.शालिनी की बात अमर की समझ में आगई. अमरीका के क़ानून से वह परिचित था.मित्रो ने भी अमर को शालिनी के साथ समस्या सुलझाने और समझौता करने की सलाह दी.अमर ने समस्या सुलझाने के लिए तीन महीने का समय माँगा. बड़ी बेटी नेहा को स्कूल में एडमीशन दिला दिया गया. अमर उसे स्कूल पहुंचाने और वापिस लाने जाता था. शालिनी अब कुछ निश्चिंत हो चली थी ,शायद अमर सच में उसके साथ समझौता करना चाहता था.एक दिन अमर ने शालिनी से घर के कागजातों पर यह कह कर साइन करा लिए कि वह घर को रिफाइनेंस कर रहा है. टैक्स के कागजों पर भी शालिनी के दस्तखत ले लिए. एक दिन शालिनी को किसी आवश्यक कार्यवश कहीं जाने के लिए कार चाहिए थी“अमर, मुझे ज़रूरी काम के लिए कुछ देर के लिए कार चाहिए.”“ऐसा कौन सा काम है,जिसके लिए कार चाहिए? नहीं, तुम जब जी चाहे कार नहीं ले जा सकतीं.”अमर ने क्रोध से कहा.अमर को कार्य बताने के बावजूद उसने चाभी देने से साफ़ इनकार कर दिया. कोई उपाय न देख, शालिनी ने सामने रखी चाभी उठा ली.क्रोधावेश में अमर ने शालिनी को पीटना शुरू कर दिया. अपनी दोनों बेटियों को ले कर बदहवास शालिनी मारिया आंटी के पास पहुंची, उनके घर से शालिनी ने फोन से नाइन वन वन को कॉल कर दिया. मिनटों में पुलिस पहुंच गई, पुलिस घरेलू हिंसा के अपराध में अमर को जेल ले जाना चाहती थी, पर अमर ने रो-रो कर माफी मांग कर कहा, “क्रोध में मुझसे गलती होगई, अब ऐसा नहीं होगा.”इसके बावजूद अमर रोज़ रात देर में वापिस आता, उसका व्यवहार भी बदला हुआ था. एक रात उसने फोन करके शालिनी से कहा-“अब मै उस घर में कभी वापिस नहीं आऊँगा, शालिनी जो चाहे करने को स्वतंत्र है. अब शालिनी के साथ उसका कोई संबंध नहीं है.”पता करने पर शालिनी को ज्ञात हुआ पिछले तीन महीनों से अमर की बहिन और उसके पेरेंट्स अमरीका में रह रहे थे. अमर ने उनके लिए एक अपार्टमेन्ट ले रखा था.मित्र की बीमारी का बहाना कर, वह रोज़ देर रात तक उन्हीं के साथ रहता था. इस बारे में अमर ने शालिनी को कुछ नहीं बताया था.अमर द्वारा शालिनी से संबंध तोड़ने की बात सुन कर शालिनी के मित्रो और मारिया आंटी ने शालिनी को समझाया –“अमर द्वारा तलाक का नोटिस भेजने के पहले शालिनी को तलाक का नोटिस भेज देना चाहिए , इससे उसका केस मज़बूत होगा.केस करने के अलावा अब कोई और चारा नहीं है.”सबकी सलाह से शालिनी ने एक महिला वकील द्वारा अमर को तलाक का नोटिस भिजवा दिया. इस नोटिस ने अमर को बौखला दिया. उसने कभी नहीं सोचा था मथुरा जैसे छोटे शहर की लड़की अमरीका जैसे विशाल महाद्वीप की धरती पर संघर्ष करने का साहस कर सकती थी. उसने कोर्ट में जज और वकीलों के समक्ष खड़े होने की कभी कल्पना भी नहीं की होगी.पूरी सच्चाई जान कर महिला वकील समझ गई, शालिनी के साथ अन्याय हुआ है,उसने कहा-“तुम डरो नहीं, तुम्हें चाइल्ड- सपोर्ट और अदालत से पैसे दिलवाऊंगी. केस समाप्त होने तक तुम्हें उसी घर में रहने का अधिकार होगा.कोर्ट का फैसला होने तक अमर को अपनी पत्नी शालिनी को खर्चे के पूरे पैसे देने होंगे.”.शालिनी की दिन-रात की नींद उड़ गई. कोर्ट और कचहरी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी, उस पर अमरीका का कोर्ट. शालिनी की माँ अपना सब कुछ त्याग कर शालिनी के साथ रहने को आगईं अन्यथा दो बच्चियों के साथ शायद वह अन्याय के सामने हार मानने को विवश कर दी जाती.मुकदमा शुरू होने पर जांच के आधार पर अमर का धोखा सामने आ गया, शालिनी की जानकारी के बिना उसने लाखों के स्टॉक्स बेच दिए थे. बैंक से पूरा पैसा निकाल कर अपने माता-पिता के नाम अकाउंट खुलवा कर पैसे स्विट्ज़रलैंड के बैंक में ट्रांसफर करवा दिए थे.पूछे जाने पर अमर ने शालिनी पर इलज़ाम लगाया कि वह उन पैसों से बिजनेस करना चाहती थी,पर जांच करने पर सच्चाई सामने आगई.उसका इलज़ाम बिलकुल गलत था. जज ने शालिनी क श्वसुर से कहा या तो वह पैसे वापिस करें अन्यथा उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा. उन्होंने अपनी सफाई में कहा, उन पैसों से इंडिया में ज़मीने खरीदी हैं. उसके लिए उन्होंने फर्जी कागज़ात भी बनवा लिए. श्वसुर ने शालिनी पागल करार करने की कोशिश की, कहा उसके लिए वह उसका प्रमाणपत्र भी दे सकते हैं. शालिनी के पक्ष में उसके पड़ोसियों, मित्रो और भारत से आए एक वकील ने गवाही दे कर शालिनी के पक्ष की सत्यता स्पष्ट कर दी.श्वसुर के सारे इलज़ाम झूठे सिद्ध होगए.दोनों पक्षों की बातों के आधार पर जज ने शालिनी के पक्ष में अपना निर्णय सुना दिया. यह सिद्ध हो गया था कि अमर ने अपनी पत्नी शालिनी को धोखा दिया है. शालिनी केस जीत गई.अमर को निर्देश दिए गए कि अमर अपनी रिटायरमेंट के पैसों से शालिनी को पैसे देगा, शालिनी के वकील की फीस का भुगतान करेगा,चाइल्ड- सपोर्ट और पांच वर्षों की अलमनी देगा. आने लाभ के लिए अमर ने बेटियों की पूरी कस्टडी मांगी, पर उसे नियमानुसार ज्वाइंट कस्टडी ही दी गई.शालिनी के सामने अब एक बड़ा सवाल था, उसे क्या करना है? अपनी दो बेटियों का उज्ज्वल भविष्य कैसे बनाना है. उन्हें किसी के सामने अपने को हीन नहीं समझने देगी. नहीं, वह हार नहीं मानेगी, स्वयं स्वाभिमान का जीवन जीते हुए, उसे अमर के शब्दों को झुठलाना है. उसने कटु शब्दों में कहा था-“तलाक का नोटिस तो भेज दिया है, पर क्या अकेले रह कर मेरे साथ वाली हाई स्टैण्डर्ड जीवन- शैली बनाए रख सकती हो, उसी शानदार लोकैलिटी में वैसे ही घर में रह पाओगी? अपनी बेटियों को कैसे बड़ा कर पाओगी, उस स्कूल में पढ़ा पाना तो सपना भर बन कर रह जाएगा.”शालिनी को जो पैसे मिले उनसे उसने उसी लोकैलिटी में एक अच्छा सा घर खरीद लिया. सहेलियों ने भी शालिनी को चाइल्ड –केयर के आधार पर काम शुरू करने की सलाह दी_“शालिनी, तुम्हारे पास चाइल्ड केयर का लाइसेंस है, जो पेरेंट्स काम पर जाते हैं उनके बच्चों की देख-रेख का कार्य अपने घर में शुरू करो.इस तरह तुम्हें आर्थिक सहायता और संतोष मिलेगा.”चाइल्ड केयर का कार्य शुरू करने करने से शालिनी को सच्चा सुख मिलने लगा.पेरेंट्स द्वारा उसके कार्य की प्रशंसा से बच्चों की संख्या बढ़ती गई. शालिनी अब पूर्णत: आत्मनिर्भर स्वाभिमानी स्त्री थी. उसके घर के सामने की बगिया उसके पुराने शौक की परिचायक थी. उसके गुलाबों की सुन्दरता देखने लोग आते थे. अपनी कार से बेटियों को स्कूल छोड़ने जाती शालिनी अपनी सहेलियों के प्रति आभारी थी, जिन्होंने उसे अमरीकी जीवन की आवश्यकताओं से परिचित कराया था.दिन महीने वर्ष बन कर बीतते गए. नन्हीं नेहा कॉलेज पहुँच गई. अब वह अमरीका की प्रसिद्ध यूनीवर्सिटी में कम्प्यूटर सांइंस के तृतीय वर्ष में थी, छोटी बेटी कोमल ने भी इस वर्ष नामी यूनीवर्सिटी में प्रवेश लिया था. शालिनी जब अपने अतीत की समस्याओं के विषय में सोचती है तो स्वयं विस्मित होती है . कैसे वह उन समस्याओं के आगे अपराजित खडी रही.पिछले कुछ दिनों से उसकी माँ और फ्रेंड्स उसे राय देने लगे हैं, अब शालिनी को अपने विषय में कुछ सोचना चाहिए.कुछ समय बाद उसकी बेटियों का अपना जीवन होगा, वह कहाँ तक शालिनी का साथ दे सकेंगी.अमरीका में माँ-बाप को अलग होते और दूसरा विवाह करते देखते हुए ही बच्चे बड़े होते हैं. कुछ नहीं तो उसे कोई सच्चा और ईमानदार पुरुष-मित्र ही बना लेना चाहिए.आज अमरीका की संस्था द्वारा शालिनी को रैविशिंग वूमन के सम्मान से सम्मानित किया गया है. हाथ में फूलों का बुके थामे शालिनी सोच रही थी उस सीधी-सादी भीरु सी लड़की में कहाँ से इतना साहस और आत्म विश्वास आगया था. किस प्रेरणा से वह अपराजित खडी रह सकी.कौन था इसके पीछे?फ़ोन की घंटी से शालिनी की तंद्रा भंगकर दी .दूसरी तरफ से एक परिचित आवाज़ थी –“कांग्रेच्युलेशन्स रैविशिंग वूमन.राजीव हियर.”“”राजीव तुम कहाँ हो? शालिनी की आवाज़ में उत्साह छलका पड़ रहा था.“मै कहाँ गया था, हमेशा तुम्हारे साथ ही तो था.सच कहो, क्या मेरे शब्द तुम्हें मुश्किलों में प्रेरणा नहीं देते रहे. अपने मन से पूछो क्या वो मेरे दिखाए डर पर विजय पाने के लिए संघर्ष नहीं करता रहा?’“मानती हूँ, पर तुमने तो अमरीका आकर अपनी मित्र की खबर ही नहीं ली.मैने क्या कुछ नहीं झेला, राजीव.”शालिनी का स्वर भीग गया था.“सच्चे मित्र कभी दूर नहीं होते.मैने तुम्हारे हर साहसी कदम पर गर्व किया है.हमेशा तुम्हारे बारे में जानकारी लेता रहा. बहुत चाह कर भी तुमसे मिलने नहीं आया, जानता था, मुझे अपने साथ पाकर तुम कमज़ोर पड़ जातीं, मेरी सहायता पर क्या निर्भर नहीं हो जातीं? आज तुम्हारी जीत मेरी भी जीत है. “अगर हार जाती तब क्या तुंम सहारा देने आते,राजीव?”“शालू. मै तो अपनी हार मानता हूँ. मै गलत था, तुमने ठीक कहा था भारतीय लड़कियों में हर स्थिति से एडजस्ट करने और उस पर विजय पाने की शक्ति होती है.तुमने ये बात सिद्ध की है.”तुमने कभी अपने बारे में भी नही बताया, राजीव. कहाँ हो कैसे हो?“जो कष्ट तुमने झेला, मैने भी सहा है. हम दोनों एक ही राह के राही हैं. कुछ दुर्भाग्यपूर्ण कारणोंवश मेरा भी मेरी पत्नी के साथ डाइवोर्स होगया.तुम्हारी तरह दो बेटों को बड़ा किया है.”राजीव ने उदासी से कहा.“तुम्हारे लिए बहुत दुःख है,काश तुमसे मिल कर हम दोनों एक-दूसरे के दुःख बाँट लेते.”“दरवाज़ा खोलो, शायद तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाए.“दरवाज़ा खोलते सामने खड़े राजीव को देख शालिनी बिना कुछ सोचे उसकी फैली बाहों में समा गई.बीस वर्षों का अवसाद क्षण भर में तिरोहित हो गया. “क्याउकअब राजीव की नज़रों में शालिनी का दूसरा ही रूप था.राकेश ने ठीक कहा था,सुन्दरता मन की होती हैदोनों ने यूनीवर्सिटी में एडमीशन ले लिया था.अक्सर मथुरा से आगरा दोनों एक साथ ही जाया करते.अब दोनों के संबंध सहज हो चुके थे. तरह-तरह के विषयों पर दोनों बात करते.एक-दूसरे का साथ अच्छा लगता. अक्सर शालिनी को लगता राजीव की मुग्ध दृष्टि उस पर निबद्ध रहती है,पर उसे उसने अपना भ्रम ही माना .राजीव की मेधा की तुलना में वह अपने को कम पाती थी.अचानक शालिनी के पापा के एक मित्र ने अमरीका से भारतीय लड़की के साथ विवाह करने के लिए आरहे लड़के अनिल के विषय में सूचना दी थी. अनिल मद्रास आईआईटी से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग करके अमरीका की कम्पनी में काम कर रहा था. वैसे तो उसका परिवार हरयाना के गांव का रहने वाला है, पर उनके परिवार के लड़के और लडकियां उच्च शिक्षा प्राप्त हैं.शालिनी के विवाह के लिए उसके पापा लड़के और उसके परिवार से बात कर सकते हैं. वर रूप में अनिल हर प्रकार से योग्य था.घर में खुशी का माहौल छा गया.शीघ्र ही शालिनी के माता-पिता अनिल के माँ-बाप से मिलने उनके गाँव भाड़ावास पहुंचे. सब बातें होने के बाद अनिल और उसका परिवार शालिनी से मिलने आ पहुंचा.अनिल के विषय में सुन कर राजीव के चेहरे पर छाई उदासी शालिनी नहीं देख सकी.उसकी आँखों में अमरीका के सपने जगमगा रहे थे.“तू अमरीका के सपने देख रही है, पर तुझ जैसी सीधी-सादी भोली लड़की क्या अमरीकी ज़िंदगी से एडजस्ट कर पाएगी?वहां की फैशनेबल गोरी लड़कियों की रहने की स्टाइल की तो छोड़, तुझे तो ढंग के कपड़ों की भी समझ नहीं है. ये कस के बांधी एक चोटी, सादे सलवार सूट वहां नहीं चलेंगे.”“क्या हम इतने खराब दीखते हैं, राजीव?”भोलेपन से शालिनी ने पूछा.“मेरी नजरों में तो तू दुनिया की सबसे अच्छी,सबसे सुन्दर लड़की है,पर डरता हूँ, कहीं अनिल ने वहां किसी और के साथ रिश्ता ना बना लिया हो.ऎसी बहुत सी कहानियां सुनी हैं.”राजीव ने अपनी बात कही.
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